● सूर्यकांत उपाध्याय

एक कबूतर और एक कबूतरी एक पेड़ की डाल पर बैठे थे। उन्हें बहुत दूर से एक आदमी आता दिखाई दिया। कबूतरी के मन में शंका हुई और उसने कबूतर से कहा, “चलो, जल्दी उड़ चलें, नहीं तो यह आदमी हमें मार डालेगा।”
कबूतर ने लंबी सांस लेते हुए इत्मीनान से कहा, “भला उसे गौर से देखो तो सही, उसकी अदा देखो, लिबास देखो, चेहरे से शराफत टपक रही है। यह हमें क्या मारेगा, बिल्कुल सज्जन पुरुष लग रहा है।”
कबूतर की बात सुनकर कबूतरी चुप हो गई। जब वह आदमी पास आया, तो अचानक उसने अपने वस्त्र के अंदर से तीर–कमान निकाला और झट से कबूतर को मार डाला। बेचारे कबूतर के वहीं प्राण पखेरू उड़ गए।
असहाय कबूतरी किसी तरह अपनी जान बचाकर उड़ गई। वह बिलखती रही, उसके दुःख का कोई ठिकाना न रहा।
पलभर में उसका सारा संसार उजड़ गया।
फिर वह कबूतरी रोती हुई अपनी फरियाद लेकर राजा के पास गई और पूरी घटना सुनाई। राजा बहुत दयालु था। उसने तुरंत अपने सैनिकों को आदेश दिया कि उस शिकारी को पकड़कर लाया जाए।
कुछ ही देर में शिकारी दरबार में लाया गया। डर के कारण उसने अपना अपराध स्वीकार कर लिया।
राजा ने कबूतरी से कहा, “तुम्हें इस शिकारी को दंड देने का अधिकार है। जो सजा देना चाहो, बताओ।”
कबूतरी ने दुःखी मन से कहा, “हे राजन, मेरा जीवनसाथी तो इस दुनिया से चला गया, जो कभी लौटकर नहीं आएगा।
इसलिए मेरे विचार से इस क्रूर शिकारी को इतनी ही सजा दी जानी चाहिए कि अगर वह शिकारी है तो उसे हमेशा शिकारी का ही लिबास पहनना चाहिए। वह शराफत का लिबास उतार दे क्योंकि शराफत का लिबास ओढ़कर धोखे से घिनौने कर्म करने वाले सबसे बड़े नीच होते हैं।”
शिक्षा: अपने आसपास शराफत का ढोंग करने वाले बहरूपियों से हमेशा सावधान रहें, सतर्क रहें और अपना बहुत ख़याल रखें।
