2050 तक आधी रह सकती है चाय की खेती

गुवाहाटी।
भारत के पूर्वोत्तर राज्यों को देश की चाय उत्पादन की रीढ़ माना जाता है। यहां की हरियाली में पसरी चाय की बागानें न केवल अर्थव्यवस्था को गति देती हैं बल्कि लाखों लोगों की आजीविका का आधार भी हैं। लेकिन अब इन बागानों पर संकट के बादल गहराने लगे हैं। संयुक्त राष्ट्र के खाद्य और कृषि संगठन की ताजा रिपोर्ट के अनुसार जलवायु परिवर्तन के चलते वर्ष 2050 तक वैश्विक स्तर पर चाय की खेती लगभग 50 प्रतिशत तक घट सकती है और इस गिरावट का सबसे बड़ा असर भारत के पूर्वोत्तर राज्यों पर पड़ेगा।
भारत के कुल चाय उत्पादन का करीब 17 प्रतिशत हिस्सा अकेले पूर्वोत्तर राज्यों से आता है। यहां की भौगोलिक स्थिति, मिट्टी और आद्र जलवायु चाय के लिए बेहद अनुकूल मानी जाती रही है। लेकिन बीते कुछ वर्षों में मौसम का मिजाज तेजी से बदल रहा है। कभी असमय बारिश तो कभी अत्यधिक गर्मी और लंबे सूखे की मार ने चाय की खेती को असंतुलित कर दिया है।
विशेषज्ञों का मानना है कि चाय एक बेहद संवेदनशील फसल है जो जलवायु में मामूली बदलाव को भी सहन नहीं कर पाती। रिपोर्ट के अनुसार 2050 तक चाय के लिए उपयुक्त मिट्टी 55 प्रतिशत तक घट सकती है। इसका सीधा असर उत्पादन, गुणवत्ता और किसानों की आर्थिक स्थिरता पर पड़ेगा। चाय उत्पादन में गिरावट न सिर्फ देश की आर्थिकी को प्रभावित करेगी बल्कि इससे जुड़े करोड़ों लोगों की आजीविका पर भी गहरा संकट आएगा।