
● गांधीनगर। राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ (आरएसएस) के सरसंघचालक मोहन भागवत ने कहा कि आध्यात्मिकता के बिना नैतिकता का कोई अर्थ नहीं है। यदि प्रत्येक व्यक्ति यह भाव अपनाए कि “मैं सब में हूं और सब मुझमें हैं” तो समाज में हिंसा स्वतः समाप्त हो जाएगी।
गुजरात प्रवास के दूसरे दिन मोहन भागवत गांधीनगर के समीप कोबा स्थित प्रेक्षा विश्व भारती ध्यान केंद्र पहुंचे, जहां उन्होंने जैन आचार्य महाश्रमणजी से भेंट कर ध्यान साधना की। उन्होंने कहा कि इस स्थान पर आना उनके लिए ऊर्जा और आत्मशक्ति प्राप्त करने का माध्यम है।
संघ द्वारा जारी प्रेस विज्ञप्ति के अनुसार भागवत ने कहा कि व्यक्तिगत और राष्ट्रीय चरित्र की नींव नैतिकता है और नैतिकता का मूलाधार आध्यात्मिकता है। “जब तक मनुष्य आध्यात्मिक नहीं होगा, उसके भीतर की नैतिकता टिक नहीं सकती। इसलिए मैं ऐसे स्थानों पर जाता हूं, जहां से कार्य के लिए आवश्यक ऊर्जा मिलती है,” उन्होंने कहा।
आचार्य महाश्रमणजी के अहिंसा संदेश का उल्लेख करते हुए भागवत ने कहा कि उनका यह सूत्र “मैं सब में हूं और सब मुझमें हैं” समाज को एकता और शांति की ओर ले जाने वाला है। संघ के शताब्दी वर्ष को लेकर उन्होंने स्पष्ट किया कि इस अवसर पर कोई भव्य आयोजन नहीं होगा। उन्होंने कहा, “देश सेवा के 100 वर्ष पूरे होना हमारा कर्तव्य है, उत्सव नहीं।”
भागवत ने बताया कि संघ कार्यकर्ता इस अवसर को समाज सेवा से जोड़ेंगे। उन्होंने कहा कि पाँच क्षेत्रों पारिवारिक शिक्षा, सामाजिक समरसता, पर्यावरण संरक्षण, नागरिक कर्तव्य और स्वदेशी पर केंद्रित कार्यक्रमों के माध्यम से पूरे समाज में संतुलन और सद्भाव का संदेश दिया जाएगा।
