■ भारत ने बनाया पहला देसी एंटीबायोटिक ‘नैफिथ्रोमाइसिन’

नई दिल्ली।
केंद्रीय विज्ञान एवं प्रौद्योगिकी मंत्री डॉ. जितेंद्र सिंह ने बताया कि भारत ने अपना पहला स्वदेशी एंटीबायोटिक ‘नैफिथ्रोमाइसिन’ तैयार किया है। यह दवा उन श्वसन संक्रमणों पर असरदार है, जो आम एंटीबायोटिक से ठीक नहीं होते, खासकर कैंसर और मधुमेह से पीड़ित मरीजों के लिए यह कारगर साबित होगी।
यह एंटीबायोटिक पूरी तरह भारत में विकसित और प्रमाणित किया गया है। इसे जैव प्रौद्योगिकी विभाग ने प्रसिद्ध दवा कंपनी वॉकहार्ट के साथ मिलकर बनाया है। मंत्री ने कहा कि यह उपलब्धि भारत की दवा उद्योग में आत्मनिर्भरता की दिशा में महत्वपूर्ण कदम है।
डॉ. सिंह ने यह जानकारी एआई पर आयोजित तीन दिवसीय चिकित्सा कार्यशाला के उद्घाटन में दी। उन्होंने कहा कि भारत को विज्ञान और अनुसंधान में तेजी लाने के लिए आत्मनिर्भर और नवाचार-आधारित तंत्र बनाना होगा ताकि सरकारी फंडिंग पर निर्भरता कम हो और निजी क्षेत्र की भागीदारी बढ़े।

उन्होंने बताया कि भारत ने जीन थेरेपी में भी बड़ी सफलता हासिल की है। हीमोफीलिया के इलाज के लिए भारत में पहली बार सफल क्लिनिकल ट्रायल किया गया है। यह परीक्षण क्रिश्चियन मेडिकल कॉलेज, वेल्लोर में हुआ और इसमें 60-70 प्रतिशत सुधार देखा गया। इस उपलब्धि को विश्व की प्रतिष्ठित पत्रिका ‘न्यू इंग्लैंड जर्नल ऑफ मेडिसिन’ में प्रकाशित किया गया है।
मंत्री ने आगे कहा कि भारत अब तक 10,000 मानव जीनोम का अनुक्रमण कर चुका है और लक्ष्य 10 लाख जीनोम का है। उन्होंने बताया कि राष्ट्रीय अनुसंधान प्रतिष्ठान के माध्यम से आने वाले पांच वर्षों में 50,000 करोड़ रुपये का निवेश किया जाएगा, जिसमें 36,000 करोड़ रुपये निजी क्षेत्र से आएंगे।
डॉ. सिंह ने यह भी बताया कि एआई तकनीक ने स्वास्थ्य सेवा और प्रशासन में नई क्रांति ला दी है। एआई आधारित मोबाइल क्लीनिक अब ग्रामीण और दूरदराज के इलाकों में स्वास्थ्य सेवाएं पहुंचा रहे हैं। साथ ही, एआई-संचालित शिकायत निवारण प्रणाली के जरिए 97-98 प्रतिशत मामलों का समाधान साप्ताहिक रूप से किया जा रहा है, जिससे नागरिक संतुष्टि में उल्लेखनीय सुधार हुआ है।
