■ धीरज मिश्र

वैदिक पंचांग के अनुसार मार्गशीर्ष मास के कृष्ण पक्ष की एकादशी को उत्पत्ति एकादशी का व्रत रखा जाता है। यह तिथि भगवान विष्णु और माता लक्ष्मी की उपासना के लिए अत्यंत शुभ मानी गई है। मान्यता है कि इस दिन श्रद्धा से पूजा करने पर जीवन में सुख, शांति और समृद्धि का वास होता है। साथ ही यह व्रत सांसारिक कष्टों को दूर करने के साथ मोक्ष-पथ को भी सुगम बनाता है।
इस वर्ष उत्पत्ति एकादशी का व्रत 15 नवंबर को होगा, और इसी दिन अभिजित मुहूर्त भी पड़ रहा है, जिससे इस पर्व का महत्व और बढ़ गया है।
तिथि और मुहूर्त
ज्योतिषीय गणना के अनुसार मार्गशीर्ष कृष्ण एकादशी तिथि 15 नवंबर की रात 12 बजकर 49 मिनट से आरंभ होगी और 16 नवंबर की रात 02 बजकर 38 मिनट तक रहेगी। उदयातिथि के आधार पर व्रत 15 नवंबर को ही मान्य होगा।
व्रत का फल और महत्व
उत्पत्ति एकादशी को मन की चंचलता शांत करने वाला, धन और आरोग्य प्रदान करने वाला व्रत बताया गया है। शास्त्रों में यह भी उल्लेख है कि इस व्रत से संतान प्राप्ति के योग प्रबल होते हैं। इसी तिथि पर भगवान विष्णु ने मुर नामक असुर का संहार किया था और उसी विजय की स्मृति में यह एकादशी मनाई जाती है।
क्षेत्रानुसार परंपरा
उत्तर भारत में यह एकादशी मार्गशीर्ष मास में आती है जबकि कर्नाटक, महाराष्ट्र, आंध्रप्रदेश और गुजरात में इसे कार्तिक मास में मनाया जाता है। कई स्थानों पर एकादशी-व्रत की शुरुआत भी इसी तिथि से की जाती है।
भगवान विष्णु की आराधना और उपवास के साथ मनाया गया यह व्रत हर प्रकार के कष्टों से मुक्ति दिलाने वाला माना गया है।
