■ ‘भारती जी ने जो रचा वह सब इतिहास है’: पाठक

● मुम्बई
“डॉ धर्मवीर भारती प्रेम के कवि हैं। उनकी प्रेम कविताओं में प्रेम भी है और करुणा भी। आज के समय में प्रेम की भी आवश्यकता है, करुणा की भी। उनके काव्य नाटकों में वैश्विक सोच है, इसलिए वे विश्व साहित्य चेतना के महत्वपूर्ण रचनाकार हैं। ‘अंधायुग’ हर तरह के अंधत्व की बात करता है। हर दौर में एक अंधायुग आता ही है।” यह विचार कवि, कथाकार और विश्वरंग के शिल्पकार संतोष चौबे ने मुम्बई में पहली बार आयोजित दो दिवसीय विश्वरंग ‘आरम्भ’ के अंतिम दिन के अंतिम सत्र ‘शताब्दी समारोह: धर्मवीर भारती-विश्व साहित्य चेतना के रचनाकार’ में व्यक्त किये।

कार्यक्रम की अध्यक्षता कर रहे कवि और संपादक विश्वनाथ सचदेव ने कहा, “पत्रकार होना साहित्य के लिए एक त्रासदी है। भारती जी ने जो श्रेष्ठ साहित्य रचा, वह 1960 के पहले रचा। जब वे ‘धर्मयुग’ के संपादक बनकर इलाहाबाद से मुम्बई आ गए, उसके बाद उन्होंने स्वयं कुछ प्रकाशित करना कम कर दिया और ‘धर्मयुग’ को ही अपनी रचना बना दिया। उसे नए शिखरों तक पहुँचाया।”

कथाकार और पत्रकार हरीश पाठक ने कहा, “भारती जी ने जो भी लिखा, वह इतिहास में दर्ज है। उनका हर कार्य सर्वश्रेष्ठ है, एक नहीं, सभी। ‘धर्मयुग’ भी उनमें शामिल है। मेरी निजी जिंदगी में उनका बेहद बड़ा योगदान है। उन्होंने एक झटके में मुझे दिल्ली प्रेस की नौकरी से उठाकर मुम्बई के टाइम्स ऑफ इंडिया में बिठा दिया। मैं उनके द्वारा नियुक्त ‘धर्मयुग’ का अंतिम उपसंपादक था।”
अमेरिका से आए अनूप भार्गव ने कहा, “जब मैंने ‘कनुप्रिया’ पढ़ी, उसी दिन तय किया कि यदि बेटी हुई तो उसका नाम कनुप्रिया रखूँगा। आज मेरी बेटी का नाम कनुप्रिया है।”
कवि लीलाधर मंडलोई, हरि मृदुल और बलराम गुमाश्ता ने भी अपने विचार रखे। संचालन यूनुस खान ने किया।
इस अवसर पर ‘गुनाहों का देवता’ के 79वें संस्करण का लोकार्पण भी किया गया।
