■ हिमांशु राज़

आज का सामाजिक दौर जितना जटिल है, उतना ही रिश्तों की नाजुकता का भी द्योतक है। थोड़ी-सी सफलता, कुछ शोहरत या धन-संपदा मिलते ही संबंध बिखरने लगते हैं। पति-पत्नी के बीच दूरी बढ़ती है और संदेह व अविश्वास की दीवारें खड़ी हो जाती हैं। फिल्म जगत में भी प्रेम संबंध इतने क्षणभंगुर हो चले हैं कि टूटे रिश्तों और तलाक की खबरें आम हो गई हैं। ऐसे समय में हेमा मालिनी जैसी नारी का संयम, धैर्य और निःस्वार्थ प्रेम विशेष रूप से विचारणीय है।
हेमा मालिनी को जब धर्मेंद्र, जो पहले से विवाहित थे और परिवार वाले थे, से प्रेम हुआ, तब उन्होंने भली-भांति समझ लिया कि वह आसान रास्ते पर नहीं चल रहीं। धर्मेंद्र के व्यक्तित्व की जटिलताओं को जानने के बावजूद उन्होंने प्रेम का मार्ग चुना। उन्होंने न अपने धर्म और सामाजिक मूल्यों को भुलाया, न ही निराशा को अपने ऊपर हावी होने दिया। उनका प्रेम विश्वास और समर्पण की मिसाल बन गया।
धर्मेंद्र का परिवार और समाज ने उन्हें सहज स्वीकार नहीं किया पर हेमा ने कभी शिकायत नहीं की। उन्होंने मन की कड़वाहट को भीतर ही समेटे रखा। उनका यह संयम किसी साधारण पत्नी का नहीं बल्कि एक असाधारण स्त्रीत्व और मानवीय संवेदनाओं का परिचय देता है। सनी और बॉबी देओल के प्रति उनका स्नेह स्पष्ट करता है कि उनका प्रेम सीमित नहीं बल्कि एक व्यापक करुणा से भरा था।
यह कहानी केवल पति-पत्नी के रिश्ते की नहीं बल्कि एक स्त्री की स्थिरता, संवेदनशीलता और आत्मसम्मान की कथा है। हेमा मालिनी ने न प्रेम को शर्तों में बांधा, न अपनी जिम्मेदारियों से मुँह मोड़ा। वे समर्पण की प्रतिमूर्ति बनकर उभरीं, जिन्होंने प्रेम को अपनी गरिमा के साथ जोड़े रखा।
आज के समय में उनकी यह कहानी एक दुर्लभ उदाहरण है, जहाँ प्रेम का अर्थ केवल पाना या छोड़ देना नहीं, बल्कि निभाना, सहना और संवेदनशील बने रहना है। हेमा मालिनी केवल एक महान अभिनेत्री ही नहीं बल्कि साहसी, समर्पित और संवेदनशील स्त्री के रूप में आदर की पात्र हैं। उनका मौन प्रेम, उनका संयम और उनकी दृढ़ता हमें सिखाती है कि रिश्तों की असली बुनियाद सम्मान, धैर्य और निःस्वार्थता है।
धर्मेंद्र भले आज हमारे बीच न हों, लेकिन हेमा मालिनी का जीवन अब भी प्रेम, त्याग और आंतरिक शक्ति की प्रेरक मिसाल बना हुआ है। उनका संघर्ष हमें यह भरोसा देता है कि सच्चा प्रेम परिस्थितियों से ऊपर उठकर चरित्र और धैर्य की परीक्षा पर खरा उतरता है। आने वाली पीढ़ियों को उनका जीवन हमेशा यह संदेश देता रहेगा कि संबंधों की स्थायित्व का आधार बाहरी चमक नहीं, बल्कि भीतर का संकल्प और संवेदनशीलता होती है।
