■ सूर्यकांत उपाध्याय

एक पंडित रोज रानी के पास कथा करता था। कथा के अंत में वह सबको कहता कि “राम कहे तो बंधन टूटे।” तभी पिंजरे में बंद तोता बोल उठता, “यूं मत कहो रे पंडित झूठे।” पंडित को क्रोध आता कि लोग क्या सोचेंगे और रानी क्या सोचेगी।
पंडित अपने गुरु के पास गया और सारी बात बताई। गुरु तोते के पास गए और पूछा, “तुम ऐसा क्यों कहते हो?”
तोते ने कहा, “मैं पहले खुले आकाश में उड़ता था। एक बार मैं एक आश्रम में जा बैठा जहां सब साधु-संत राम-राम बोल रहे थे। मैंने भी राम-राम बोलना शुरू कर दिया। एक दिन जब मैं राम-राम बोल रहा था, तब एक संत ने मुझे पकड़ कर पिंजरे में बंद कर लिया और मुझे दो-एक श्लोक सिखा दिए।
आश्रम में एक सेठ आया। उसने संत को कुछ पैसे देकर मुझे खरीद लिया। सेठ ने मुझे चांदी के पिंजरे में रखा। मेरा बंधन और बढ़ गया, निकलने की कोई संभावना न रही। एक दिन उस सेठ ने अपना काम निकलवाने के लिए मुझे राजा को भेंट कर दिया। राजा ने मुझे खुशी-खुशी ले लिया क्योंकि मैं राम-राम बोलता था। रानी धार्मिक प्रवृत्ति की थी, इसलिए राजा ने मुझे रानी को दे दिया। अब मैं कैसे कह दूं कि ‘राम-राम कहे तो बंधन छूटे’?”
तोते ने गुरु से कहा, “आप ही कोई युक्ति बताएं जिससे मेरा बंधन छूट जाए।”
गुरु बोले, “आज तुम चुपचाप सोए पड़े रहना, जरा भी न हिलना। रानी समझेगी कि तुम मर गए और पिंजरा खोल देगी।”
ऐसा ही हुआ। अगले दिन कथा के बाद जब तोता नहीं बोला तो संत ने चैन की सांस ली। रानी ने देखा कि तोता गुमसुम पड़ा है, शायद मर गया। रानी ने पिंजरा खोल दिया। तभी तोता उड़कर आकाश में पहुंच गया और बोलने लगा, “सतगुरु मिले तो बंधन छूटे।”
अतः, चाहे कितना भी शास्त्र पढ़ लो, कितना भी जाप कर लो पर सच्चे गुरु के बिना बंधन नहीं छूटता।
