● कच्छ: दीवारों पर उकेरी जाती है परंपरा और रचनात्मकता

लिप्पन आर्ट गुजरात के कच्छ क्षेत्र की एक पारंपरिक लोक कला है, जिसका मूल ‘लिप’ यानी ‘लेप करना’ शब्द से जुड़ा है। सदियों से रबारी, मुतवा और मेघवाल समुदायों की महिलाएं इसे अपने मिट्टी के घरों की दीवारों पर सजावट और ताप नियंत्रण के लिए करती रही हैं। मिट्टी, गोबर और छोटे शीशों से बनी यह कला गर्मियों में घर को ठंडा और सर्दियों में गर्म बनाए रखने में सहायक होती है।
माना जाता है कि यह परंपरा सिंध क्षेत्र के कुम्हार समुदाय से शुरू हुई, जिन्होंने मिट्टी के बर्तनों के साथ-साथ दीवारों पर भी यह कला उकेरनी शुरू की। पारंपरिक तौर पर यह कला ‘भुंगा’ नामक गोल घरों की दीवारों पर बनाई जाती थी। रबारी महिलाएं इसे बिना किसी पूर्व रेखाचित्र के बनाती हैं जबकि मुतवा समुदाय के पुरुष शीशे की सजावट करते हैं।
धार्मिक भावनाओं से जुड़ी इस कला में हिंदू समुदाय पशु-पक्षी और दैनिक जीवन के दृश्य उकेरता है, वहीं मुस्लिम समुदाय केवल ज्यामितीय डिजाइन बनाता है। आज यह कला गांवों से निकलकर शहरों तक पहुंच गई है और अब पारंपरिक सामग्रियों की जगह क्ले, रंग और वॉटरप्रूफ तकनीक का प्रयोग भी होने लगा है।
एक सांस्कृतिक धरोहर
लिप्पन कला केवल सजावट नहीं बल्कि यह पीढ़ियों से चली आ रही जीवनशैली है। यह हमें सिखाती है कि कैसे सीमित संसाधनों में भी रचनात्मकता और सुंदरता को जीवित रखा जा सकता है। मिट्टी, गोबर और शीशों से जन्मी यह कला कच्छ की सांस्कृतिक आत्मा का प्रतीक बन चुकी है।