
● नई दिल्ली
वैश्विक तकनीकी परिदृश्य में भारत की भूमिका अब केवल उभरते खिलाड़ी की नहीं रही, बल्कि निर्णायक ताक़त के रूप में सामने आ रही है। आर्टिफिशियल इंटेलिजेंस की वैश्विक दौड़ में भारत ने एक अहम उपलब्धि हासिल की है और दुनिया का तीसरा सबसे प्रतिस्पर्धी देश बनकर उभरा है।
यह आकलन अमेरिका की प्रतिष्ठित स्टैनफोर्ड यूनिवर्सिटी द्वारा तैयार किए गए ग्लोबल एआई वाइब्रेंसी टूल के आधार पर किया गया है। रिपोर्ट के अनुसार भारत को इस सूचकांक में 21.59 अंक मिले हैं। सूची में अमेरिका 78.6 अंकों के साथ पहले स्थान पर है, जबकि चीन 36.95 अंकों के साथ दूसरे पायदान पर बना हुआ है।
अंकों का यह अंतर बताता है कि अमेरिका और चीन तक पहुँचने के लिए भारत को अभी लंबा रास्ता तय करना है। इसके बावजूद भारत ने कई विकसित और तकनीकी रूप से समृद्ध देशों को पीछे छोड़ दिया है। दक्षिण कोरिया, जापान, सिंगापुर, यूनाइटेड किंगडम और जर्मनी जैसे देश इस रैंकिंग में भारत से नीचे दर्ज किए गए हैं।

रिपोर्ट में स्पष्ट किया गया है कि एआई में प्रतिस्पर्धा का यह मूल्यांकन केवल तकनीकी क्षमता तक सीमित नहीं है। इसमें कुशल मानव संसाधन, अनुसंधान एवं विकास, निवेश का स्तर, सरकारी नीतियां, तकनीकी ढांचा, सार्वजनिक स्वीकार्यता और आर्थिक प्रभाव जैसे अनेक मानकों को शामिल किया गया है।
स्टैनफोर्ड यूनिवर्सिटी के अनुसार, भारत की तेज़ी से विकसित होती टेक इकोसिस्टम, मजबूत स्टार्टअप संस्कृति और व्यापक इंजीनियरिंग प्रतिभा इस प्रगति के प्रमुख आधार हैं। इसके साथ ही सरकार की डिजिटल और तकनीकी पहलों ने देश में एआई को अपनाने के लिए अनुकूल वातावरण तैयार किया है।
यह उपलब्धि ऐसे समय सामने आई है, जब वैश्विक टेक दिग्गज भारत पर बड़े दांव लगा रहे हैं। अमेज़न ने वर्ष 2030 तक एआई, क्लाउड कंप्यूटिंग और लॉजिस्टिक्स इन्फ्रास्ट्रक्चर में करीब 35 अरब डॉलर निवेश की प्रतिबद्धता जताई है।
वहीं माइक्रोसॉफ्ट ने भारत में क्लाउड और एआई विस्तार के लिए 17.5 अरब डॉलर निवेश का ऐलान किया है, जिसे एशिया में उसका अब तक का सबसे बड़ा निवेश माना जा रहा है। इससे पहले इंटेल, कॉग्निजेंट और ओपनएआई जैसी प्रमुख कंपनियां भी भारत में निवेश और सहयोग की योजनाएं घोषित कर चुकी हैं।
