
हिंदू पंचांग के अनुसार आषाढ़ मास के शुक्ल पक्ष की एकादशी तिथि को आषाढ़ी एकादशी कहा जाता है। इसे देवशयनी एकादशी या हरिशयनी एकादशी भी कहते हैं। इस दिन से भगवान विष्णु चार माह के लिए योगनिद्रा में चले जाते हैं, जिसे चातुर्मास की शुरुआत माना जाता है।
इस तिथि का विशेष महत्व महाराष्ट्र, कर्नाटक और गोवा में देखा जाता है, जहां पंढरपुर स्थित विट्ठल मंदिर तक लाखों वारी श्रद्धालु पैदल यात्रा करते हैं। यह दिन संत तुकाराम और संत ज्ञानेश्वर की वारी यात्रा का समापन भी है।
इस दिन व्रत रखने का विशेष महत्व है। श्रद्धालु एकादशी को निर्जल या फलाहारी व्रत रखते हैं और रात्रि जागरण करते हुए श्रीहरि विष्णु का भजन-कीर्तन करते हैं। माना जाता है कि इस दिन व्रत और भक्ति से भगवान विष्णु प्रसन्न होकर भक्तों को मोक्ष प्रदान करते हैं।
इस दिन श्रद्धालु उपवास, भजन और प्रार्थना के माध्यम से विष्णु आराधना करते हैं। आषाढ़ी एकादशी आत्मशुद्धि, भक्ति और संयम का पर्व है, जो अध्यात्मिक जागरण और पुण्य अर्जन का सुअवसर प्रदान करता है।
व्रत तिथि:
- एकादशी शुरू: 5 जुलाई 2025, शाम 6:58 बजे
- एकादशी समाप्त: 6 जुलाई 2025, रात 9:14 बजे
- व्रत पारण: 7 जुलाई 2025, सुबह 5:29 से 8:16 बजे तक
- द्वादशी समाप्ति: 7 जुलाई, रात 11:10 बजे