■ सद्गुरु श्री लोकेशानंद जी महाराज श्री नारायण भक्तिपंथ (एसएनबीपी) के प्रवर्तक हैं तथा श्री मंदिर श्री नारायण पुरम तीर्थ, शहादा, जिला नंदुरबार, महाराष्ट्र के प्रेरक हैं। ईश्वर के मूल स्वरूप भगवान श्री नारायण अर्थात विष्णु भगवान इनके परमाराध्य हैं। श्री लोकेशानंद जी महाराज की प्रेरणा से श्री विष्णु को समर्पित पक्षीराज श्री गरुड़ प्रासाद को अर्वाचीन विश्व में प्रथम बार शहादा धाम में मूर्ति स्वरूप दिया जा रहा है।

■ आरटीआई एक्टिविस्ट व अग्निशिला के संपादक अनिल गलगली, यशोभूमि के संवाददाता अजय सिंह, मुंबई वार्ता के संपादक श्रीश उपाध्याय, दोपहर का सामना के वरिष्ठ स्तंभकार राजेश विक्रांत एवं यश भारत के आरके जैन की उपस्थिति में ‘सद्वार्ता’ के संपादक अभय मिश्र ने सद्गुरु आचार्य श्री लोकेशानंद जी महाराज से एक विस्तृत बातचीत की। प्रस्तुत है उस बातचीत के महत्वपूर्ण अंश-

● आज के युग में विज्ञान, तकनीक, आर्टिफिशियल इंटेलिजेंस, इंटरनेट की प्रमुख भूमिका है। इस युग में धर्म और आध्यात्मिकता की क्या प्रासंगिकता है?
◆ देखिए धर्म हाथी है। जबकि विज्ञान उसके आगे एक चींटी है। धर्म-अध्यात्म ने जितनी भी तरक्की की है, धर्म शास्त्रों में जो लिखा गया है, विज्ञान आज तक वहां नहीं पहुंच पाया है। उदाहरण के लिए विज्ञान रक्त नहीं बना सकता। विज्ञान आज तक शहद की एक बूंद नहीं बना पाया। विज्ञान ने शहद की डुप्लीकेटिंग में शरबत बनाया, जिसकी एक एक्सपायरी डेट होती है। लेकिन आपने सुना होगा कि किसी देश में साढ़े पांच हजार साल पुराना शहद मिला है और वह आज तक एकदम सही और शुद्ध रूप में है। मेरे कहने का मतलब यह है कि जो ईश्वर ने बनाया है वह चिरकाल तक वैसा का वैसा ही रहेगा। वह कभी खराब नहीं होगा। जैसे हमारी आंख के अंदर, एक आंख के अंदर 27 करोड़ सेल्स-कोशिकाएं होती हैं। इन्हें साइंस ने बनाया क्या? इन्हें किस साइंटिस्ट ने वहां फिट किया? किसी ने नहीं! तो कहने का मतलब यह है कि हर चीज को विज्ञान के नजरिए से नहीं देखा जाना चाहिए। धर्म को भाव से देखो। अब यह जो सूर्य ग्रहण होता है, इस ग्रहण के समय मैंने एक अखबार में इंटरव्यू दिया था कि गर्भवती महिलाओं को ग्रहण के समय बाहर नहीं निकलना चाहिए। उसकी छाया उनके लिए घातक हो सकती है। तो एक साइंटिस्ट ने मेरी बातों पर आपत्ति उठाई। मैंने दैनिक भास्कर के संस्थापक रमेश चंद्र अग्रवाल जी से कहा कि उस साइंटिस्ट से मेरी मुलाकात का प्रबंध करवाइए। अग्रवाल जी ने पुणे में मेरी मुलाकात उस साइंटिस्ट महोदय से करवाई। उस मुलाकात में मैंने उन वैज्ञानिक महोदय से कहा कि आप सभी चीजों को विज्ञान के नजरिए से देखते हैं। सूर्य हाइड्रोजन का गोला है। उसका प्रकाश बीच में आ गया। मेरा आपसे कहना यह है कि अगर मैं आपको थप्पड़ मारूं तो आपको लगेगा क्या? उन्होंने कहा कि क्यों नहीं लगेगा। मैंने कहा अरे भाई, आप इस बात को साइंस की नजर से देखिए, यह चमड़ी है और मेरी चमड़ी आपकी हड्डी से टकरा गई बस। इसमें बुरा मानने की क्या बात है? तब वे निरुत्तर हो गए। कहने का मतलब यह है धर्म हाथी है जबकि विज्ञान उसके सामने एक चींटी ही है। उदाहरण के तौर पर मैं कहना चाहूंगा कि ईश्वर ने पक्षी बनाया। विज्ञान ने उसे देखकर हवाई जहाज बनाए। यह प्रकृति का एक खेल है और विज्ञान ने प्रकृति प्रदत्त व ईश्वर प्रदत्त चीजों को मॉडिफाई करके अपनी सुविधा के अनुसार प्रयोग किया है।
● सत्यनारायण भगवान की पूजा एकल रूप में क्यों होती है?
◆ मेरा कहना यह है कि जब आप भगवान श्री नारायण की पूजा करते हैं तो उसमें लक्ष्मी जी रहती ही हैं। हमारे लिए महत्वपूर्ण है कि हम धर्म का, पूजा का, भक्ति का, आराधना का एक रास्ता पकड़ें और चलते रहें। नारायण में सब आ ही जाता है।

● मेरा अगला सवाल नाम स्मरण के संदर्भ में है। कोई कहता है कि अकेले नाम लो, कोई कहता युगल नाम लो, जैसे राधेकृष्ण, राधेश्याम, सीताराम, सांब सदाशिव आदि। युगल नाम लेना चाहिए या एकल, क्या सही रहेगा?
◆ मेरा कहना है कि नाम नारायण का लेना चाहिए। भक्ति उसी की होती है। अगर आप उनके अवतारों में जाएंगे तो अवतारों की संख्या हजारों में है। यहां यह लीला की थी, वहां यह लीला की था, इनका नाम इस देवी के साथ, इस अवतार का नाम लूं या उस देवी के साथ उस अवतार का। कई लोग कहते हैं कि देवी के साथ नाम लेना चाहिए तो कुछ का मानना है कि नहीं लेना चाहिए। मेरा कहना है कि यह सब झंझट आप त्याग दीजिए। सनातन धर्म विष्णु भगवान से चलता है। 24 अवतार भी भगवान विष्णु के ही हैं। इसलिए उस नारायण का नाम, श्री विष्णु जी का नाम लीजिए जिनकी जयंती नहीं आती, जिनका कोई जन्मदिन नहीं आता। ‘ॐ नमो भगवते वासुदेवाय’ इसमें वासुदेव श्री नारायण का नाम है। किसी देवी का नाम नहीं। विशुद्ध भगवान की भक्ति कीजिए। श्री नारायण की कीजिए।
● गृहस्थों को पंचदेवों की भक्ति करनी चाहिए या किसी अन्य देवी-देवता की?
◆ पंचदेवों की भक्ति जो की जा रही है या कर रहे हैं, वही सनातन है। वही शुद्ध है। पांच देवों में परम इष्ट विष्णु जी हैं। किसी भी देवी-देवता की पूजा करते हैं, किसी भी देवी देवता की तो हाथ में जल लेकर पहले श्री विष्णु जी का ही नाम बोलते हैं और पूजा के बाद में भी आप श्री नारायण कहते हैं- श्री नारायण समर्पयामि।
● मंत्र जाप किया जाए या नाम जप किया जाए? इसको लेकर बहुत सारे लोग कंफ्यूज होते हैं। यह दोनों एक है या अलग-अलग। इनमें से एक को ही करना चाहिए या दोनों को?
◆ देखिए किसी भी क्रिया में थोड़ा सा भी इधर-उधर हुआ तो उसके उसके फल में अंतर आ जाता है। उदाहरण के लिए आपके पास किसी का एक मोबाइल नंबर है, उसमें 10 डिजिट होते हैं। फोन में सेव करते समय एक भी डिजिट इधर-उधर हुआ तो क्या आपका उस व्यक्ति से संपर्क होगा? बिल्कुल नहीं होगा। रांग नंबर लगेगा। इसी तरह से नाम स्मरण अलग है, मंत्र जाप अलग है। मंत्र यानी मंत्र मन को तारता है, मन को अपलिफ्ट करता है और नाम क्लीनिंग करता है, साफ-सफाई करता है। जैसे किसी गाड़ी को साफ करना एक अलग चीज है और गाड़ी को चलाना एक अलग बात है। हम नाम स्मरण करके अपने हृदय को शुद्ध करते हैं और मंत्र जाप हमारे जीवन को तारता है।

● महाराज जी, इसके नियम क्या हैं? आसन लगाकर बैठना चाहिए या कभी भी करते रहना चाहिए?
◆ बगैर नियम के कुछ नहीं होगा। कोई फल नहीं प्राप्त होगा। जैसे कि आप भोजन करते हैं। कोई कहे कि दिनभर खाते रहो तो आप कहोगे कि मैं दो बार बैठकर खाऊंगा तभी तृप्ति मिलेगी। भजन का यही नियम है। भजन भी दिन में कम से कम दो बार बैठकर करना पड़ेगा या तीन बार। हर चीज का एक नियम होता है। तभी फल मिलता है। तभी अच्छे परिणाम मिलते हैं।
● नई जनरेशन में धर्म के प्रति जिज्ञासा बढ़ाने के लिए क्या उपाय किए जाने चाहिए?
◆ मैं आपकी चिंता को भली-भांति समझता हूं और मैं इस दिशा में प्रयास भी करता हूं। मैं अपना काफी समय विद्यार्थियों को देता हूं। यूथ ओवर ऑल डेवलपमेंट, एक गांव में पांच बच्चे हमारे सत्रों में हिस्सा लेते हैं। हम बच्चों को बताते हैं कि जीवन सूत्र की आचार संहिता क्या है? क्या करें, क्या न करें? क्या करके हम जीवन में आगे बढ़ सकते हैं, अच्छा काम कर सकते हैं। जैसे मैं एक चीज बार-बार कहता हूं कि तीन गलतियां करने से मां सरस्वती बुद्धि छोड़ देती हैं। पहली गलती है उल्टे हाथ से पानी पीना। दूसरी है बार-बार मुंह जूठा करना यानी कि भोजन का एक नियम होता है। भोजन मतलब तीन बार से ज्यादा नहीं होना चाहिए। एक और गलती है अपने हाथों से अपने पैर के तलवे को छूना। हम इन सत्रों में नैतिक सूत्र, जीवन सूत्र देते हैं। मेरा मानना है कि विज्ञान ने धर्म को एक बढ़िया सहयोग दिया है तो विज्ञान के सहयोग से धर्म का प्रचार व विकास होना चाहिए।
● भारत का भविष्य आप किस रूप में देखते हैं?
◆ देखिए, अल्टीमेटली हर देश का अपना प्रारब्ध होता है। लेकिन भारत वर्ष उसमें सबसे अग्रणी और अप्रतिम स्थान पर है। जैसे कि हमारे यहां चार युगों की व्यवस्था बताई गई है। यह सिर्फ भारत में ही है। दूसरी जगह नहीं है तो उस युग परिवर्तन के अनुसार भारत में आजकल जो भी चल रहा है, वह हमारे शास्त्रों में लिखा हुआ है और उसका निचोड़ यह है कि भारत का भविष्य उज्जवल है।