- जहां न रिश्तों की रेखाएं, न उम्र की सीमाएं, वहीं है मित्रता
■ धर्मेन्द्र पाण्डेय

इस क्षणभंगुर संसार में जहां हर संबंध किसी सामाजिक ढांचे, पारिवारिक परंपरा या जैविक नाते की सीमाओं में बंधा होता है, वहीं एक रिश्ता है जो इन सभी सीमाओं को लांघकर सीधे आत्मा से आत्मा तक पहुँचता है मित्रता। यह न कोई अनुबंध मांगता है, न कोई प्रमाणपत्र। यह मन के एक कोने में सहज उपजे उस विश्वास का नाम है, जो बिना किसी स्वार्थ के पनपता है, फलता है और समय के साथ और गहरा होता चला जाता है।
हर रिश्ते का समाज ने एक अनुशासन तय कर रखा है। पिता-पुत्र, मां-बेटी, बहन-भाई, बहू-सास, पति-पत्नी इन सबके अपने-अपने नियम, रीति-नीति और मर्यादाएं हैं। बड़ा भाई उम्र में छोटा नहीं हो सकता, मां का स्त्रीलिंग में होना अनिवार्य है और बहनोई भविष्य के फूफाजी हो सकते हैं। इस तरह के सामाजिक विन्यास जीवन को एक ढांचे में ढालते हैं। ये रिश्ते अभिनय के पात्रों की भांति होते हैं। अपना निर्धारित संवाद बोलते हैं और नियत समय पर मंच छोड़ देते हैं।
लेकिन इस समूची सामाजिक संरचना के बीच एक ऐसा रिश्ता भी है, जिसे किसी निर्धारित पात्रता की आवश्यकता नहीं होती, वह है मित्रता। यहां न उम्र की सीमा है, न हैसियत का तकाजा और न ही लिंग या जाति की दीवारें। एक छात्र अपने शिक्षक को मित्र मान सकता है, एक बुजुर्ग अपने छोटे पड़ोसी को। मित्रता में जो समानता है, वह भावनाओं की है, आत्मीयता की है, विश्वास की है। यह रिश्ता रक्त से नहीं, आत्मा की ऊष्मा से जुड़ा होता है।
मित्रता का सौंदर्य इसी में है कि यह अपने आप में संपूर्ण है। जहां सभी रिश्ते समय, दूरी और परिस्थिति के अधीन हो जाते हैं, वहीं मित्रता वह वृक्ष है जो बिना शोर किए गहरी छांव देता है। इसका कोई रुतबा नहीं पर इसका स्पर्श संजीवनी बन जाता है। मित्र वही होता है जो चुपचाप आपके दुख को आत्मसात कर ले और आपकी खुशी में सबसे पहले शामिल हो।
मित्रता किसी त्याग की मांग नहीं करती लेकिन वह अपने आप में सबसे बड़ा समर्पण बन जाती है। मित्र को न कोई स्पष्टीकरण देना होता है, न किसी औपचारिकता की आवश्यकता होती है। वह आपके मौन को भी समझता है और आपकी चुप्पी में भी साथ निभाता है।
वास्तव में, जिनके पास यह खजाना है, वे ही इस संसार के सच्चे कुबेर हैं। धन, प्रतिष्ठा और शक्ति सब क्षणिक हैं, लेकिन एक सच्चा मित्र जीवन की सबसे स्थायी संपत्ति है। यह रिश्ता जब एक बार बनता है तो जीवन की हर कड़ी को सहज बनाता है। मित्रता एक कविता है, जो समय के हर छंद में अपनी लय खोज लेती है।
इसलिए जब सारे रिश्ते समय की धूल में छिपते चले जाएंगे, तब मित्रता वही दीया बनकर टिमटिमाएगी, जिसकी लौ कभी नहीं बुझती। यही मित्रता का सौंदर्य है शब्दातीत, निर्विवाद और अविनाशी।