● हर सेक्टर पर बढ़ते बोझ से व्यापार पर गहराया खतरा

नई दिल्ली।
भारतीय निर्यातकों के लिए अमेरिका का बाजार अब जोखिम और अनिश्चितता से भरा हो गया है। 7 अगस्त से लागू हुए 25 प्रतिशत शुल्क के बाद, आगामी 27 अगस्त से यह शुल्क दोगुना होकर 50 प्रतिशत तक पहुंच जाएगा। इतना ही नहीं, अप्रैल से पहले लगाए गए पुराने शुल्क भी यथावत रहेंगे। ऐसे में भारतीय निर्यातकों को अब भय सता रहा है कि यदि अगले 20 दिनों में कोई समाधान नहीं निकला तो वे अमेरिका जैसा बड़ा बाजार खो सकते हैं। जहां भारत सरकार अमेरिकी महाशुल्क का जवाब कूटनीतिक तरीके से देने की तैयारी में है, वहीं भारतीय व्यापारी इस मुद्दे का त्वरित व स्थायी समाधान चाहते हैं।
प्रतिस्पर्धा में पिछड़ने का खतरा
भारत को अमेरिका में चीन, वियतनाम, बांग्लादेश और इंडोनेशिया जैसे देशों से कड़ी प्रतिस्पर्धा मिलती है। इनमें से किसी भी देश पर भारत जितना शुल्क नहीं लगाया गया है, जिससे भारत की स्थिति असमान और असंतुलित हो गई है। निर्यातकों के अनुसार अमेरिकी खरीदारों ने मौजूदा ऑर्डर होल्ड पर रख दिए हैं और नए ऑर्डर लेने से इनकार कर रहे हैं। सरकार की मदद की भी एक सीमा है और 50 प्रतिशत तक के शुल्क को वहन करना लगभग असंभव होता जा रहा है।
प्रमुख सेक्टरों पर सीधा असर
समुद्री उत्पाद (झींगा): भारत हर साल अमेरिका को 2 अरब डॉलर के झींगा का निर्यात करता है। लेकिन अब इस पर शुल्क 60 प्रतिशत तक बढ़ गया है। जबकि चिली और कनाडा के झींगा पर या तो बेहद कम या शून्य शुल्क है, जिससे भारत की प्रतिस्पर्धा घटती जा रही है।
ऑर्गेनिक केमिकल्स: पिछले वित्तीय वर्ष में भारत ने अमेरिका को 2.7 अरब डॉलर के ऑर्गेनिक केमिकल्स भेजे। अब इन पर 54 प्रतिशत शुल्क लगेगा जबकि आयरलैंड और स्विट्जरलैंड पर यह क्रमशः 36 और 39 प्रतिशत है। इससे भारतीय केमिकल्स की मांग प्रभावित होना तय है।
कालीन (कार्पेट): भारत अमेरिका का सबसे बड़ा कालीन निर्यातक है, जिसकी हिस्सेदारी 35 प्रतिशत है। अब भारतीय कालीनों पर 52 प्रतिशत का शुल्क लगेगा जबकि चीन पर 30 प्रतिशत और तुर्की पर केवल 10 प्रतिशत।
बुनाई वाले कपड़े: भारत का बुनाई कपड़े का वार्षिक निर्यात 2.7 अरब डॉलर है। अब इन पर शुल्क बढ़कर 63.9 प्रतिशत हो गया है जबकि चीन, वियतनाम और कंबोडिया पर यह काफी कम (30%, 20%, 18%) है।
अन्य गारमेंट: अन्य परिधान उत्पादों पर 60.3 प्रतिशत शुल्क लगेगा, जिससे भारत का 2.8 अरब डॉलर का निर्यात प्रभावित होगा। तुलना में चीन, वियतनाम और बांग्लादेश पर क्रमशः 30%, 20% और 18% शुल्क है।
मेड-अप्स (बेडशीट, टॉवेल आदि): भारत इस श्रेणी में हर साल 3 अरब डॉलर का निर्यात करता है। अब इन पर 59 प्रतिशत शुल्क लगेगा, जबकि चीन और पाकिस्तान पर यह शुल्क क्रमशः 30% और 17% है।
रत्न और आभूषण (जेम्स एंड ज्वेलरी): भारत अमेरिका को 10 अरब डॉलर के आभूषण निर्यात करता है। अब इन पर 52.1 प्रतिशत का शुल्क लगा दिया गया है, जबकि कनाडा और स्विट्ज़रलैंड पर यह 35 और 39 प्रतिशत ही है।
बड़ा बाजार फिसलने की कगार पर
इन कठोर शुल्कों ने न केवल भारतीय उत्पादों की प्रतिस्पर्धात्मकता को कम किया है बल्कि व्यापार संबंधों पर भी प्रश्नचिह्न लगा दिया है। निर्यातक जहां हताश हैं, वहीं सरकार की मौन प्रतीक्षा से संकट और भी गहराता जा रहा है। यदि शीघ्र कोई कूटनीतिक या व्यापारिक समाधान नहीं निकला तो भारत को अमेरिकी बाजार में अपनी वर्षों की मेहनत गंवानी पड़ सकती है।