■ सुरेश मिश्र @9869141831

• लजिया बचाइ ल न
कौरवों की सभा में द्रौपदी बारी-बारी सबसे गुहार कर रही है, मगर कोई उसकी लाज बचाने के लिए आगे नहीं आ रहा है। पांचों पाण्डव सिर झुकाए बैठे हैं। भीष्म, द्रोणाचार्य, कृपाचार्य जैसे लोग भी बेबस नजर आ रहे हैं। अब एक ही आसरा बचा था। कृष्णा ने अपने वीरन कृष्ण को पुकारा –
कान्हा जल्दी आवा सुदर्शन घुमाइ द
लजिया बचाइ ल न।
तोहरी बहिनियां लचार,
घेरे हउवें सउ सियार,
हिरनी छटपटाए, जाल से छुड़ाइ द
लजिया बचाइ ल न।
पांच-पांच ठो भतार,
सब झुकाए हौं कपार,
अब त नइहरे क आस जिनि बुझाइ द
लजिया बचाइ ल न।
अन्हरा पूत ताल ठोंके,
वोकरा केउ भी नाहीं रोके,
भंउके सूत पूत, एकरा जिनि ढिठाइ द
लजिया बचाइ ल न।
हमरी डूबल जाए नइया,
कहवां सूतल हौ कन्हइया,
गरुण जल्दी मोरे वीर के जगाइ द
लजिया बचाइ ल न।
बहिनी-बहिनी कब बोलइब्या,
अब कऽ रखिया न बन्हइब्या?
ताना मारे ई जमाना, जिनि भुलाइ जा
लजिया बचाइ ल न।
कान्हा जल्दी आवा सुदर्शन घुमाइ द
लजिया बचाइ ल न।