● हिमांशु राज

एक ओर जहां धर्म गुरुओं का लिव-इन और महिलाओं के एक से ज्यादा संबंध के बारे में दिए गए वक्तव्यों से देश का तापमान बढ़ता जा रहा है, वहीं एक कुनबा बाबाजी लोगों के समर्थन में आ गया और दूसरा उनके विरोध में। इसी प्रकार एक और कार्यक्रम जो आजकल की शादियों में सात फेरों से ज्यादा जरूरी हो गया है, वो है प्री वेडिंग शूट। प्री वेडिंग शूट के नाम पर शादी के पहले अर्धनग्न व आपत्तिजनक अवस्था में होने वाले कपल की कई रील व फोटो वायरल भी हुई थी और आज भी हो रही है। दिखावे का यह कीड़ा कहीं भारतीय परंपरा को अपरोक्ष रूप से क्षय तो नहीं कर रहा?
आजकल शादी-विवाह का रंग-ढंग देखकर लगता है, जैसे ब्याह-ब्याह नहीं, बल्कि किसी फिल्म का ‘फर्स्ट डे फर्स्ट शो’ रिलीज हो रहा हो। पहले जमाने में तो रिश्ते की शुरुआत ‘रोका-टिका’ से होती थी और फोटो खिंचाने का काम बस शादी वाले दिन होता था, वो भी पैरों में घी डाले नाच-गाने के बीच। अब तो पहले ड्रोन कैमरा बुक होता है, फिर शूट की लोकेशन तय होती है। मानो सात फेरे लेने से पहले सात नदियां पार करनी हों।

पहले मोहल्ले में शादी का कार्ड पहुंचता था तो गली के नुक्कड़ तक खबर गूंज जाती थी, अब तो लोग पूछते हैं, ‘भैया, टीजर कब आ रहा है?’ जैसे कोई सलमान खान की नई पिक्चर का इंतज़ार कर रहे हों। रिश्तों की शुरुआत अब दिल की गहराई से नहीं बल्कि इंस्टाग्राम के फिल्टर और रील के बैकग्राउंड म्यूजिक से होती है। घूंघट उठाकर दुल्हन को देखने वाले दिन अब गए भई, अब तो घूंघट की जगह सिर के ऊपर ड्रोन मंडराता है, जो ऐसे-ऐसे एंगल से तस्वीर लेता है कि चील भी शर्मा जाए। पहले जो लम्हे घर की चौखट के भीतर, दादी की साड़ी की ओट में और आंगन की ठंडी छांव में कटते थे, आज वे पार्क की बेंच पर, झरनों की फुहार में और सब्ज़ी मंडी तक में कबूतरों और राहगीरों की साक्षी में फिल्माए जाते हैं। और तो और, सब कुछ इतना ‘लाजवाब’ होना चाहिए कि देखने वाला सोचे, भाई ये शादी का एल्बम है या किसी महंगे इत्र का इश्तहार!
संस्कार-संकोच अब कैमरा मैन के एडिटिंग सॉफ्टवेयर में कैद हैं। रिश्ते की गहराई अब ‘थोड़ा और करीब… बस…’ वाले डायरेक्शन से तय होती है, दिल से नहीं। और प्यार की असलियत? उतनी जितनी वीडियो पर लाइक आएं। वीडियो वायरल हो जाए तो वाह-वाह, नहीं तो प्यार अधूरा माना जाएगा। हंसी तो तब आती है जब यही समाज, जो रात-दिन लाडली बेटियों को मर्यादा और पर्दे की कसमें देता है, वही इन वीडियोज़ को अपने व्हाट्सऐप स्टेटस पर लगाकर ताली पीटता है। ऊपर से ‘वाह बेटा’ वाला इमोजी भी भेज देता है। जैसे गली में मुंहबोले चाचा जी पीछे से बीच-बीच में आंख भी मार देते थे।

आज की शादी तो सीधी-सीधी एक ‘वेब सीरीज’ का ग्रैंड फिनाले लगती है। बड़े-बड़े महल, विदेशी लोकेशन, महंगे गाउन, स्लो-मोशन शॉट और तो और कुछ अलग करने के नाम पर नाले में गंदे पानी में शूट … पंडित जी के मंत्र तो जैसे बैकग्राउंड में बजते हैं और मुख्य रोल निभाते हैं एडिटिंग के ट्रांजिशन इफेक्ट। फेरे कम पड़ जाएं तो चलता है, लेकिन अगर री-टेक छूट गया तो समझो धरती फट पड़ी। कहावत सही है ‘नाच न जाने आँगन टेढ़ा’ लेकिन यहां तो बात उलट है, नाच भी आता है, आंगन भी सीधा है, बस नाच से पहले पोस्टर और टिकट बिकने जरूरी हैं। शायद आने वाले कल में शादी की तारीख भी वही ‘क्रिएटिव टीम’ फाइनल करेगी, जो टीजर-ट्रेलर एडिट कर रही है ताकि पब्लिक का ‘पहला शो’ मिस न हो जाए।