● भरतकुमार सोलंकी (वित्त विशेषज्ञ)

अक्सर हम ‘कचरा’ शब्द सुनते ही नाक-भौं सिकोड़ लेते हैं, लेकिन आज की दुनिया में यही कचरा करोड़ों का कारोबार बन सकता हैं। भारत में वेस्ट मैनेजमेंट, रीसाइक्लिंग, भंगार और कचरा प्रोसेसिंग का क्षेत्र आने वाले वर्षों में सबसे तेजी से बढ़ने वाले उद्योगों में से एक है। जिस तरह 90 के दशक में आईटी सेक्टर ने भारत की तस्वीर बदली, उसी तरह अगले 20 वर्षों में वेस्ट मैनेजमेंट ग्रीन गोल्ड साबित हो सकता हैं।
संभावनाएं क्यों अपार हैं?
भारत हर साल लगभग 62 मिलियन टन नगरपालिका ठोस कचरा (Municipal Solid Waste) पैदा करता हैं, जिसमें से 70 प्रतिशत से अधिक अनौपचारिक रूप से ही निपटाया जाता हैं। इसमें से आधे से ज्यादा कचरे को सही तरीके से रीसाइकल किया जाए तो यह हजारों करोड़ रुपये की वैल्यू पैदा कर सकता हैं। मेटल स्क्रैप, प्लास्टिक, ई-वेस्ट, पेपर, ऑर्गैनिक वेस्ट – ये सभी अलग-अलग इंडस्ट्रीज को कच्चा माल मुहैया कर सकते हैं, जिससे आयात पर निर्भरता भी कम होगी और रोजगार भी बढ़ेंगे।

कॉर्पोरेट और स्टार्टअप्स की एंट्री
अब यह सेक्टर केवल कबाड़ी की दुकान तक सीमित नहीं रहा। बड़ी कंपनियां, जैसे टाटा स्टील, JSW, ITC, अडानी वेस्ट मैनेजमेंट और सैकड़ों स्टार्टअप, इस क्षेत्र में संगठित और टेक-ड्रिवन मॉडल के साथ उतर चुके हैं। Let’s Scrap जैसी पहलें दिखाती हैं कि कैसे कॉर्पोरेट वेस्ट को सिस्टमैटिक तरीके से रीसाइकल कर कंपनियों को मुनाफा और पर्यावरण अनुपालन दोनों दिलाया जा सकता हैं।
रोज़गार और उद्यमिता के अवसर
• माइक्रो-रीसाइक्लिंग यूनिट्स – छोटे स्तर पर लोहे, एल्यूमिनियम, प्लास्टिक या पेपर की प्रोसेसिंग।
• ई-वेस्ट मैनेजमेंट– पुराने मोबाइल, कंप्यूटर और इलेक्ट्रॉनिक्स से कीमती मेटल निकालना।
• ऑर्गैनिक वेस्ट से बायोगैस– गांव और शहर दोनों में ऊर्जा और खाद का उत्पादन।
• अपसाइकलिंग प्रोडक्ट्स– फैशन, फर्नीचर और होम डेकोर में कचरे से क्रिएटिव प्रोडक्ट बनाना।

सरकारी और अंतरराष्ट्रीय सपोर्ट
भारत सरकार की स्वच्छ भारत मिशन, सर्कुलर इकॉनॉमी पॉलिसी और एक्सटेंडेड प्रोड्यूसर रिस्पांसिबिलिटी (EPR) जैसी योजनाएं इस सेक्टर को बढ़ावा दे रही हैं। वहीं, वर्ल्ड बैंक और UNDP जैसी संस्थाएं भी फंडिंग और टेक्निकल सपोर्ट दे रही हैं।
कचरा केवल गंदगी नहीं, अवसर है
अगर आपमें उद्यमिता की सोच है तो वेस्ट मैनेजमेंट में कदम रखना समय की मांग है। यह न केवल आपके लिए मुनाफा लाएगा बल्कि पर्यावरण संरक्षण, रोजगार सृजन और देश की अर्थव्यवस्था में भी अहम योगदान देगा। आने वाले दशक में जो लोग कचरे की वैल्यू पहचानेंगे, वही ‘ग्रीन गोल्ड’ के मालिक बनेंगे।