● पानी की बूंदों से उम्मीद, वारका टॉवर की कहानी

मुंबई।
सूरज की तपिश से झुलसते गांव, सूखे से जूझती महिलाएं और पानी की तलाश में रोज़ाना किलोमीटरों पैदल चलने वाले बच्चे यह तस्वीर केवल अफ्रीका की ही नहीं बल्कि भारत के कई हिस्सों की भी हकीकत है। ऐसे समय में, वारका टॉवर जैसे प्रयोग एक नई उम्मीद बनकर सामने आ रहे हैं।
जब आसमान से बरसी राहत
इथियोपिया के एक छोटे से गांव में जब पहला वारका टॉवर लगाया गया, तो ग्रामीणों ने संदेह से देखा कि क्या सचमुच हवा से पानी निकलेगा? लेकिन कुछ ही घंटों में टॉवर के नीचे बने जलाशय में बूंदें जमा होने लगीं। बच्चों की आंखों में चमक आ गई और महिलाओं ने पहली बार अपने सिर पर भारी घड़े ढोने से राहत की कल्पना की। यही दृश्य अब भारत और अन्य जल संकटग्रस्त देशों के लिए भी प्रेरणा बन रहा है।
तकनीक जो प्रकृति से सीखती है
वारका टॉवर का डिज़ाइन प्रकृति से प्रेरित है। इसकी ऊंचाई 10–12 मीटर और वजन करीब 80 किलो है। बांस और जूट जैसी स्थानीय सामग्रियों से बनी यह संरचना हल्की, मजबूत और पूरी तरह बायोडिग्रेडेबल है। इसके भीतर लगी जालीदार सतह हवा में मौजूद नमी को खींचकर पानी की बूंदों में बदल देती है। यह पूरी प्रक्रिया बिना बिजली या मशीनरी के, केवल संघनन और वाष्पीकरण जैसी प्राकृतिक शक्तियों से काम करती है।

भारत की प्यास बुझेगी?
भारत के राजस्थान, बुंदेलखंड और महाराष्ट्र के कुछ इलाकों में हर गर्मी में पानी की त्रासदी सामने आती है। हजारों गांवों में महिलाओं को रोज़ाना कई किलोमीटर दूर से पानी लाना पड़ता है। विदर्भ के किसान अक्सर सूखे के कारण फसलें खो देते हैं और राजस्थान के रेगिस्तानी गांवों में पानी के लिए पलायन तक करना पड़ता है। ऐसे क्षेत्रों में वारका टॉवर जैसी तकनीक जीवनदायी सिद्ध हो सकती है। यह न केवल पेयजल उपलब्ध कराएगी बल्कि महिलाओं और बच्चों को पानी लाने की थकाऊ दिनचर्या से मुक्ति दिलाकर शिक्षा और आजीविका पर ध्यान केंद्रित करने का अवसर भी देगी।
भविष्य की राह
वारका टॉवर को ऊर्जा उत्पादन और खाद्य उगाने की तकनीकों से भी जोड़ा जा सकता है। विशेषज्ञों का मानना है कि आने वाले वर्षों में यह केवल एक जल समाधान नहीं बल्कि गांवों की आत्मनिर्भरता की रीढ़ बन सकता है। पर्यावरण के अनुकूल इस तकनीक की लागत भी अपेक्षाकृत कम है, जिससे इसे बड़े पैमाने पर लागू करना संभव हो सकेगा।
वारका टॉवर यह साबित करता है कि समाधान हमेशा भारी-भरकम मशीनों या जटिल तकनीकों से नहीं आते। कभी-कभी प्रकृति से सीखकर सरल उपाय भी करोड़ों ज़िंदगियां बदल सकते हैं। जैसे आसमान से टपकती हर बूंद किसी प्यासे के लिए जीवन का संदेश होती है, वैसे ही वारका टॉवर आज मानवता के लिए आशा का प्रतीक बन चुका है।
स्रोत: Warka Water Official, ArchDaily, Designboom