र्ज़ुकान।
नॉर्वे के दक्षिणी हिस्से में बसा छोटा-सा कस्बा र्ज़ुकान साल में पांच महीने सूरज की रोशनी से वंचित रहता है। अक्टूबर से मार्च तक ऊँचे पहाड़ सूर्य को ढक लेते हैं और पूरा शहर छाया में डूबा रहता है। इस दौरान यहाँ के 3,000 निवासियों को सीज़नल अफेक्टिव डिसऑर्डर (SAD) जैसी मानसिक परेशानियों से जूझना पड़ता था। लेकिन अब हालात बदल चुके हैं। 2013 में यहाँ पर्वत की ढलानों पर विशाल कंप्यूटर-नियंत्रित दर्पण लगाए गए, जो सूर्य की किरणों को परावर्तित कर शहर के टाउन स्क्वायर तक पहुँचाते हैं।

सौ साल पुराना सपना
स्थानीय इतिहासकार बताते हैं कि 1913 में उद्योगपति सैम ऐडे (Sam Eyde) ने शहर में सूरज लाने का विचार रखा था। उस समय यह केवल एक सपना था। तकनीक ने इजाज़त नहीं दी। लेकिन यह सपना कभी भुलाया नहीं गया। करीब एक सदी बाद, 2005 में स्थानीय कलाकार मार्टिन आंडरसन ने इस विचार को दोबारा जिंदा किया। आखिरकार 30 अक्टूबर 2013 को पहला “सन मिरर” र्ज़ुकान में स्थापित हुआ।
तकनीकी कमाल
तीन दर्पण, प्रत्येक का आकार 17 वर्गमीटर। कुल क्षेत्रफल 51 वर्गमीटर।
कंप्यूटर द्वारा नियंत्रित यह प्रणाली सूर्य की चाल का पीछा करती है और लगभग 600 वर्गमीटर इलाके को उजाला देती है।
स्थानीय निवासियों की आवाज़
‘हमारे लिए यह किसी त्यौहार जैसा है,’ 67 वर्षीय निवासिनी ग्रेटे लार्सन कहती हैं। ‘जब धूप टाउन स्क्वायर पर पड़ती है, तो लोग वहाँ इकट्ठा होकर कॉफी पीते हैं, बातें करते हैं। लगता है जैसे शहर जीवित हो गया हो।’ एक और स्थानीय युवक एरिक जोहानसन कहते हैं, ‘पहले सर्दियों में मूड डिप्रेसिव हो जाता था। अब धूप की थोड़ी-सी झलक भी हमें ऊर्जा और उम्मीद देती है।’
मानसिक स्वास्थ्य और पर्यटन
विशेषज्ञों के अनुसार धूप की कमी अवसाद और थकान का बड़ा कारण है। इस परियोजना ने न केवल स्थानीय निवासियों की सेहत सुधारी, बल्कि टूरिज़्म को भी नई रफ़्तार दी। अब सर्दियों में र्ज़ुकान देखने हजारों पर्यटक आते हैं। र्ज़ुकान से प्रेरित होकर इटली के Viganella गाँव में भी 2006 में ऐसा ही एक विशाल दर्पण लगाया गया, जिसने वहाँ की ज़िंदगी बदल दी।
सोर्स: The Atlantic, CNN Travel, World Economic Forum, Visit Norway, The Guardian