● भरतकुमार सोलंकी (वित्त विशेषज्ञ)

प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने लाल किले की प्राचीर से स्पष्ट कहा कि उनकी सरकार किसानों, पशुपालकों, मछुआरों और मधुमक्खी पालकों के हितों को लेकर किसी भी तरह का समझौता नहीं करेगी। यह घोषणा निश्चित ही किसान समाज के लिए आश्वस्त करने वाली है। परंतु जब प्रधानमंत्री किसानों के हित की बात करते हैं तो यह सवाल स्वाभाविक रूप से उठता है कि वे किन किसानों की बात कर रहे हैं?
क्या यह घोषणा केवल गुजरात, राजस्थान या महाराष्ट्र के किसानों तक सीमित है? यदि राजस्थान के किसानों की बात है तो क्या यह पूर्वी राजस्थान के किसानों के लिए है, जहाँ नदियाँ और बांध अपेक्षाकृत अधिक हैं? या यह संदेश पश्चिमी राजस्थान के किसानों के लिए भी उतना ही लागू होता है, जहाँ पानी की कमी आज भी जीवन का सबसे बड़ा संकट है? और यदि पश्चिमी राजस्थान की ही बात करें तो क्या यह घोषणा जोधपुर, बाड़मेर, जैसलमेर जैसे जिलों के किसानों की समस्याओं को भी ध्यान में रखती है?

प्रधानमंत्री का व्यक्तित्व और उनके शब्द केवल किसी सीमित क्षेत्र तक सिमटने लायक नहीं हैं। लेकिन यही प्रश्न खड़ा होता है कि क्या अब तक केंद्र सरकार या प्रधानमंत्री कार्यालय ने ऐसी ‘यूनिफॉर्म योजना’ बनाई है, जिसके तहत पूरे देश के किसानों को खेत की सिंचाई के लिए 24 घंटे, 365 दिन, प्रतिपल नल की टूटी खोलते ही पानी उपलब्ध हो जाए? क्योंकि चाहे किसान गुजरात का हो, राजस्थान का हो या बिहार का; उसकी सबसे बड़ी समस्या और सबसे बड़ा सपना पानी है। खाद, बीज, सब्सिडी, मूल्य समर्थन, फसल बीमा जैसी सैकड़ों योजनाएँ तब तक अधूरी हैं जब तक खेत तक पानी न पहुँचे। वास्तविकता यह है कि पानी वितरण ही हज़ारों विकास योजनाओं का मूल है।
आज ज़रूरत इस बात की है कि किसान हित के नाम पर केवल भाषण न हो बल्कि एक राष्ट्रव्यापी जल–वितरण और सिंचाई की स्थायी व्यवस्था बने।
जिस तरह बिजली या मोबाइल नेटवर्क गाँव-गाँव तक पहुँच गए, उसी तरह पानी की पहुँच भी हर खेत तक सुनिश्चित करनी होगी। तभी प्रधानमंत्री की यह घोषणा वास्तविक अर्थों में किसानों के लिए हितकारी सिद्ध होगी।
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