● पुरातत्ववेत्ता मणि का दावा

नई दिल्ली।
भारतीय इतिहास में सोने की मुद्राओं की शुरुआत आमतौर पर कुशाण काल (ईस्वी 1-3वीं शताब्दी) से मानी जाती रही है, लेकिन वरिष्ठ पुरातत्ववेत्ता और नाणकशास्त्र विशेषज्ञ डॉ. बी.आर. मणि के नए अध्ययन ने इस धारणा को चुनौती दी है। उनका कहना है कि सोने के सिक्कों का प्रयोग भारतीय उपमहाद्वीप में करीब 3,000 साल पहले, हड़प्पा और ऋग्वैदिक काल में भी होता था।
राष्ट्रीय संग्रहालय (दिल्ली) में आयोजित मासिक व्याख्यान “Identification of Nishka: The earliest Indian Gold Coins” में बोलते हुए डॉ. मणि ने कहा—
“हमारी परंपरा कल्पना पर आधारित नहीं हो सकती। वैदिक, उत्तरवैदिक और प्रारंभिक ऐतिहासिक साहित्य में ‘निष्क’ का उल्लेख मिलता है, जो वस्तुतः सोने की मुद्रा थी।”

मंडी (उ.प्र.) के खजाने से मिला सुराग
डॉ. मणि का शोध वर्ष 2000 में पश्चिमी उत्तर प्रदेश के मंडी क्षेत्र में मिले खजाने पर आधारित है। उस दौरान खेतों की खुदाई में स्थानीय लोगों को सोने की बड़ी मात्रा मिली, जिसे बाद में प्रशासन और पुरातत्व विभाग तक पहुँचने से पहले ही अधिकांश लूट लिया गया। राष्ट्रीय संग्रहालय में सुरक्षित रखी गई 1547 निष्काओं में से करीब 40 का अध्ययन कर मणि ने निष्क को सोने की प्राचीन मुद्रा के रूप में चिन्हित किया।
साहित्य और परंपरा से मेल
मणि के अनुसार, वैदिक साहित्य और ब्राह्मण ग्रंथों में निष्क, सतामान आदि स्वर्ण मुद्राओं का उल्लेख मिलता है। अब तक इन्हें केवल अलंकरण या सोने की छोटी गोल मणि समझा जाता था, लेकिन यह अध्ययन दर्शाता है कि इनका उपयोग लेन-देन और सामाजिक प्रतिष्ठा के प्रतीक के रूप में भी होता था।
यह खोज भारतीय आर्थिक इतिहास की धारणाओं में बड़ा बदलाव ला सकती है। यदि मणि का निष्कर्ष व्यापक स्तर पर स्वीकार किया जाता है तो यह सिद्ध होगा कि भारतीय समाज में संगठित मुद्रा प्रचलन की परंपरा कुशाणों से कहीं पहले मौजूद थी।
स्रोत: India Today, ThePrint, Loksatta