
● नई दिल्ली। नींद केवल विश्राम नहीं है, बल्कि मस्तिष्क और शरीर की मरम्मत का अनिवार्य समय है। कॉर्नेल यूनिवर्सिटी के शोध बताते हैं कि नींद के दौरान मस्तिष्क में मौजूद “ग्लाइम्फेटिक सिस्टम” सक्रिय होकर अपशिष्ट पदार्थों को बाहर निकालता है, स्मृति को मजबूत करता है और न्यूरॉन्स को रीसेट करता है। यदि नींद बाधित हो तो यह प्रक्रिया अधूरी रह जाती है और शारीरिक व मानसिक स्वास्थ्य प्रभावित हो सकता है।
प्रकाश का इस पर गहरा असर पड़ता है। विशेषकर नीली तरंगदैर्ध्य वाली रोशनी (जैसे मोबाइल, टीवी, टैबलेट या LED बल्ब) रात में मेलाटोनिन नामक हार्मोन को दबा देती है। मेलाटोनिन ही वह हार्मोन है जो शरीर को नींद की अवस्था में ले जाता है और गहरी नींद बनाए रखता है। अध्ययन बताते हैं कि केवल दो घंटे तक LED स्क्रीन देखने से मेलाटोनिन का स्तर लगभग आधा हो सकता है और नींद आने में देर लगती है।
यह असर केवल तेज रोशनी तक सीमित नहीं है। हल्की रोशनी जैसे स्ट्रीटलाइट का झरोखे से आना या कमरे में जलता नाइटलैंप भी मेलाटोनिन उत्पादन को प्रभावित कर सकती है। लगातार ऐसा होना शरीर की जैविक घड़ी (सर्केडियन रिद्म) को बिगाड़ सकता है। परिणामस्वरूप थकान, नींद की गुणवत्ता में गिरावट और मूड से जुड़ी समस्याएँ जैसे चिड़चिड़ापन या उदासीनता देखी जा सकती हैं। कुछ अध्ययनों में लंबे समय तक रात में प्रकाश के संपर्क को अवसाद और चिंता के अधिक जोखिम से भी जोड़ा गया है।
इसलिए विशेषज्ञ सलाह देते हैं कि सोते समय वातावरण यथासंभव अंधकारमय रखा जाए। यदि रोशनी की आवश्यकता हो तो गर्म, हल्की और लाल रंग की रोशनी का उपयोग बेहतर माना जाता है। आधुनिक जीवनशैली में पूर्ण अंधेरा पाना हमेशा संभव नहीं होता, लेकिन अनावश्यक प्रकाश से बचना, स्क्रीन का उपयोग कम करना और नींद के वातावरण को शांत व अंधकारमय बनाना मानसिक और शारीरिक स्वास्थ्य दोनों के लिए लाभकारी सिद्ध हो सकता है।
सोर्स: PubMed (National Library of Medicine, USA), Neuroscience News, arXiv (Cornell University, USA द्वारा संचालित प्रीप्रिंट सर्वर)
